शुभ और पवित्र गंध से पुष्टि और पुष्टि से आयु बढ़ती है।इस कथन का अनेक मंत्रों में प्रकटीकरण हुआ है।श्रीसूक्त और महामृत्युंजय मंत्र में पुष्टि और आयु का संबंध कहा गया है..” गंधद्वारां दुराधर्षाम् नित्यपुष्टां करीषिणीम् ” तथा ” त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टि वर्धनम्।”यह गंध देवता को समर्पित करने के पश्चात् स्वयं धारण किया जाता है।

* शुभगंध में धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष का सूक्ष्मनिवास रहता है.. गंधेन लभते कामं गंधो धर्मप्रद:सदा।
अर्थानां साधको गंधो गंधो मोक्षप्रदायक:।। शारदातिलक।

* यह गंध पांच प्रकार का होता है ….. चूर्णीकृत, घृष्ट , भस्मीकृत, रसोत्पन्न और प्राणी से उत्पन्न। इसी को कहा है..गंध:पंचविध:प्रोक्तःदेवानांप्रीतिदायक:। कालिकापुराण
चूर्ण पत्तों से बनताहै।कमल,दौना,जटामासी,पाटल,अर्जुन आदि के पत्तों में स्वाभाविक सुगंधि रहती है।घृष्ट का अर्थ है घिसा हुआ। चंदन, सरल (देवदारु), अगर, साल, ब्रह्म वृक्ष को घिस कर इनके पंक का तिलक किया जाता है। इनको जला कर भस्म बनाकर भी गंध तैयार किया जाता है। कारवी,विल्व,तिलकऔर गंधिनी वृक्ष के पत्तों के रस को निकाल कर गंध बनाया जाता है। कस्तूरी और गोरोचन प्राणिजन्य गंध होते हैं।इस प्रकार से पांच प्रकार के गंध होते हैं।इनमें से जो भी सहज उपलब्ध हो उसका गंध उपयोग में लाया जाता है।
चंदन की सुगंधि को श्रेष्ठतम माना गया है……
सर्वेषु गंध जातेषु प्रशस्तो मलयोद्भव:।।
इन गंधों में कर्पूर मिलाने को भी कहा गया है।
देवता को अनामिका से पितर को तर्जनी से तथा मनुष्य को मध्यमा से गंध तिलक लगाने का विधान है।

डॉ. गणेश प्रसाद मिश्रा
असिस्टेंट प्रोफेसर ज्योतिष विभाग केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय
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