मानव सभ्यता में आदिकाल से ही गंध का महत्व रहा है। सुगंध जहाँ मनुष्यों को आकर्षित करती है वहीं दुर्गंध उन्हें बताती है कि उन्हें किन चीजों से दूर रहना है। वातावरण में अगर सुगंध मौजूद हो तो व्यक्ति खुश रहता है। यही कारण है कि प्राचीन समय से ही मनुष्यों के विभिन्न समाजों में सुगंधित वस्तुओं और इत्रों का प्रयोग होता रहा है। यह प्रयोग जीवन के व्यक्तिगत और धार्मिक दोनों ही पहलू में किया जाता रहा है।

भारतीय सभ्यता के परिपेक्ष्य में सुगंध

भारतीय सभ्यता की बात करें तो सिंधु घाटी सभ्यता में भी इत्र और इत्र के निर्माण के साक्ष्य मिलते हैं। आयुर्वेद से जुड़े चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में इत्र निर्माण की विधि भी मिलती है। वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत संहिता में भी इत्र से जुड़े संदर्भ मिलते हैं।

सुगंध का व्यक्तिगत जीवन में महत्व

व्यक्तिगत जीवन में सुगंध का बहुत महत्व रहा है। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में सुगंधि का प्रयोग व्यक्तिगत शृंगार के लिए किया जाता रहा है। यह व्यक्तित्व को आकर्षक बनाता है।

यह भी मान्यता है कि जहाँ सात्विक अन्न से शरीर स्वस्थ होता है वैसे ही सुगंध से सूक्ष्म शरीर स्वस्थ होता है। ऐसे में इत्र/सुगंधि का प्रयोग करना व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है। सुगंध से मन शांत रहता है और जिस व्यक्ति के जीवन में शांति रहती है उसके जीवन में सुख और समृद्धि भी आती है।

भारतीय परंपरा के अनुसार मानव का जीवन मन से प्रभावित होता है और यह मन शरीर के चक्रों से प्रभावित होता है। यह चक्र सात हैं और इन चक्रों पर जो चीजें असर डालती हैं वह हैं रंग, सुगंध और शब्द (मंत्र)। ऐसा माना जाता है कि मन की अवस्था के अनुसार अलग-अलग सुगंध का प्रयोग किया जाए तो मन की व्यथाएँ दूर की जा सकती है। अगर सुगंध का सही से प्रयोग किया जाए तो उससे एकाग्रता बढ़ती है और अवसाद (डिप्रेशन) जैसी बीमारी दूर होती हैं।

विज्ञान द्वारा भी यह माना गया है कि सुगंध का व्यक्ति के ऊपर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे वह खुश रहता है, उसका मन शांत रहता है, उसका आत्मविश्वास विकसित होता है और  वह खुद को आकर्षक महसूस करता है।

सुगंध का धार्मिक महत्व

ऐसा माना जाता है कि देवताओं को भी सुगंध प्रिय होती है। यही कारण है कि पूजा में भी सुगंधित चीजों जैसे इत्र, कपूर, चंदन इत्यादि का प्रयोग होता रहा है। हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि सुगंध का संबंध शुक्र ग्रह से होता है। यह भी माना जाता है कि शुक्र ग्रह उत्तम हो तो लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

हिंदू धर्म से जुड़े विभिन्न शास्त्रों में भी सुगंध के महत्व को दर्शाया गया है।

वास्तु के अनुसार भी घरों में और व्यवसायिक भवनों (ऑफिस) में भी सुगंध का प्रयोग किया जाता है। इत्रों का प्रयोग कर घरों और व्यवयासिक भवनों का माहौल खुशनुमा बनाया जाता रहा है जिससे वहाँ सकारात्मक वातावरण का निर्माण हो और वहाँ रहने वाले या कार्य करने वाले लोग खुश और उत्पादक (प्रोडक्टिव) रहें।

ज्योतिषशास्त्र की बात की जाए तो उसके अनुसार राशिनुसार अगर व्यक्ति इत्र का प्रयोग करे तो उसके लिए यह लाभदायक होता है।

कौन से देवता को कौन सा इत्र चढ़ाया जाना चाहिए

देवताओ को कौन सा इत्र चढ़ाया जाना चाहिए इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए। उग्र गंध के बजाए ऐसी गंध उन्हें अर्पित की जानी चाहिए जो कि मन को प्रसन्न करे।

ऐसी भी मान्यता है कि मंदिर में चंदन, कपूर, चंपा, गुलाब, केवड़ा, केसर और चमेंली के इत्र भेंट करने या लगाने से देवी और देवता प्रसन्न होते हैं। बुरी नजर से बचने के लिए चंदन का प्रयोग भी हिंदू मान्यता में किया जाता है। यह माना जाता है कि चंदन के इत्र का प्रयोग कर नकारात्मक ऊर्जा को खत्म किया जा सकता है।

इत्र का प्रयोग करते हुए रखे इन बातों का ध्यान

चूँकि सुंगध का व्यक्ति पर गहरा असर पड़ता है ऐसे में इस बात का खास ध्यान रखा जाना चाहिए कि जिस सुंगध का आप प्रयोग कर रहे हैं उसका निर्माण कैसे हुआ है। सुगंध पैदा करने वाली वस्तु प्राकृतिक होनी चाहिए क्योंकि देखा गया है कि कृत्रिम (सिथेटिक) रूप से बनाए गए इत्र प्रयोग करने वालों पर बुरा असर डालते हैं। इससे सिर दर्द, जलन, साँस लेने में तकलीफ इत्यादि हो सकती है।

इस बात का ध्यान रखें कि सुगंध हल्की होनी चाहिए क्योंकि तीखी सुंगंध भी उल्टा असर डाल सकती है। यह माहौल को खुशनुमा बनाने के स्थान पर वहाँ मौजूद व्यक्तियों को परेशान कर सकती है।

पूजा के लिए अगर सुगंधित इत्रों का प्रयोग किया जा रहा है तो इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिए कि उनका निर्माण ऐसी चीजों से हो जो शुद्ध और सात्विक हों।